क्या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ का इस्तेमाल ‘घमंड’ के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवि उस घमंड की बात कर रहा है जो इंसान में दौलत, ताकत, सत्ता, प्रतिष्ठा आदि के कारण पैदा हो जाती है। इस घमंड के आ जाने से वह खुद के आगे दूसरों को कम समझने लगता है। उसे अपने से ज्यादा बलशाली कोई नहीं दिखाई देता। पहली पंक्ति में कवि व्यक्ति को अपना अहंकार त्यागकर दयावान बनने के लिए कह रहा है। दूसरी पंक्ति में कवि ने मन का अहंकार त्यागकर मीठी बोली बोलने का आग्रह किया है।